पुलिस का कार्य जनसाधारण की सुरक्षा करना और अपनी वर्दी की लाज रखना होता है ऐसे में मलाईदार पदों पर रहने का यत्न करना और रसूख कायम करने का यत्न करना स्थापित मूल्यों के सर्वथा प्रतिकूल हैI कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बिना लाइम लाइट में आए अपने कर्तव्यों को सर्वस्व समझते हुए उजाड़ जगहों पर भी ड्यूटी करते हैं और अपने आपको जनसाधारण के लिए हर समय तैयार रखते हैंI
बीकानेर में पुलिसिया रुआबदार हिसाब किताब बनाये रखने में तथाकथित रूप से चापलूसी, चमचागिरी व चाटुकारिता में माहिर डरपोक एवं दब्बू किस्म के थानेदार जी को इंसानियत, सेवा भावना, कमाई में समाई आदि बातों से कोई वास्ता नजर नहीं आताI हम तो डूबेंगे सनम लेकिन तुम्हें भी ले डूबेंगे की तर्ज पर अपने उच्चाधिकारियों की किरकिरी करवा कर अपनी औकात दिखा दी। सदा शानदार बटरिंग करने में एक्सपर्ट ये थानेदार जी चले तो चौबे जी बनने थे लेकिन बड़े बेआबरू होकर कूचे से छब्बे जी बन कर निकले तो असलियत सामने आ गई।
एक सत्ता सबसे बड़ी है जिसके आगे कोई सिफारिश नहीं चलती चाहे कितने ही जुगाड़ कर लोI जो लोग भगवान की बेआवाज़ लाठी से डर कर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, उनके दिन अच्छे आने वाले हैं यह तय है।लेकिन जो लोग मलाई का मोह नहीं छोड़ रहे हैं, उनका रसातल मे जाना निश्चित है। लिहाजा थानेदार जी कृपया अपनी औकात से बाहर मत आइए, क्यूंकि आप न तो अंतिम ऑथोरिटी है… ना ही आपके हाथ में कुछ हैI ऐसे कथित लोग अपनी उल्टी गिनती शुरू कर सकते हैं …@ बेबाक प्रताप

1 thought on “दुबे जी चले थे-चौबे बनने, छब्बे बनकर लौटे…”
Next time I read a blog, I hope that it wont disappoint me just as much as this particular one. After all, I know it was my choice to read through, but I actually believed youd have something helpful to say. All I hear is a bunch of crying about something that you could fix if you werent too busy searching for attention.